एक अनोखी परंपरा, घूंघट वाली महिलाएं अखाड़े में भिड़ी, एक दूसरे को उठाकर पटका, गांव के मर्द घरों में रहे कैद
रिपोर्ट-देवेन्द्र राजपूत ब्यूरो चीफ राठ/हमीरपुर
हमीरपुर। जिले के एक छोटे से गांव में आज सैकड़ों साल पुरानी परम्परा में महिलाओं ने अखाड़े में दांवपेंच दिखाए। घूंघट वाली महिलाओं ने दंगल में एक दूसरे को उठा-उठाकर पटका। बारिश के मौसम में महिलाओं के अनोखे दंगल के आसपास मर्दों की नो इन्ट्री भी रही। देर शाम तक चले दंगल में गांव की सरपंच ने कुश्ती लडऩे वाली महिलाओं को सम्मानित भी किया।
बुंदेलखंड के हमीरपुर जिले के मुस्करा क्षेत्र के लोदीपुर निवादा गांव में सदियों पुरानी परम्परा में आज महिलाओं के दंगल की धूम मची। बारिश थमने के बाद शाम को गांव के बीच अखाड़े में घूंघट वाली महिलाओं ने एक दूसरे को उठा-उठाकर पटका। गांव की सरपंच गिरजा देवी ने महिलाओं के दंगल का शुभारंभ किया। दंगल में घूंघट वाली रामा देवी गुप्ता ने गिरजा को अखाड़े में उठाकर पटका वहीं रानी ने गत्तों, मनीषा पाल ने खुशबू पाल को धूल चटाई।
दंगल में संपत सविता और ज्ञान देवी के बीच कुश्ती कराई गई जिसमें संपत सविता विजयी रही वहीं केसर ने बबली साहू को अखाड़े में उठा-उठाकर पटका। देर शाम तक चले दंगल में घूंघट वाली माया और गौरी ने अपनी सहेलियों को दांवपेंच से जमीन पर गिरा दिया। दंगल में शिव कुमारी, रामरती, ज्ञानवती पाल, प्यारी, हीरा, सुनीता, फूलमती और फूलारानी समेत तमाम महिलाओं ने अखाड़े में दांवपेंच दिखाए। दंगल के समापन पर गांव की सरपंच ने विजयी और उपविजयी महिलाओं को पुरस्कार देकर सम्मानित किया।
महिलाओं के दंगल के आसपास मर्दों की नो इन्ट्री रहती हैं। गांव की सरपंच गिरजा देवी ने बताया कि हर साल रक्षाबंधन के दूसरे दिन शाम को यहां गांव में सिर्फ महिलाओं का दंगल होता है। यह सदियों पुरानी परम्परा का दंगल है। जिसमें पूरे गांव की महिलाएं एकत्र होती है। घूंघट वाली महिलाओं के साथ ही बुजुर्ग महिलाएं भी अखाड़े में उतरती है। बताया कि उत्तर प्रदेश का लोदीपुर निवादा ही ऐसा गांव है जहां महिलाओं का दंगल साल में एक बार होता है। सरपंच ने बताया कि यह दंगल आजादी के पहले से लगातार हर साल आयोजित होता आ रहा है। दंगल बुंदेली परम्परा में महिलाओं की शौर्य गाथा का एक अच्छा उदाहरण भी है।
सरपंच ने बताया कि गांव में सदियों पुरानी परम्परा के दंगल में सिर्फ महिलाओं की ही कुश्ती होती है। महिलाओं के दंगल में मर्दों की नो इन्ट्री रहती है। यदि कोई भी मर्द दंगल के आसपास आने की कोशिश करता है तो लाठी से लैस महिलाएं उन्हें खदेड़ देती है। बताया कि महिलाओं के दंगल के दौरान मर्द या तो घरों में रहते है या फिर गांव से बाहर चले जाते है। महिलाओं के दंगल से पहले पूरे गांव की महिलाएं सामूहिक रूप से कजली निकालती है। गांव के मंदिरों में माथा टेकने के बाद मंगल गीत गाते हुए महिलाएं अखाड़े में पहुंचती है। दंगल में बुजुर्ग महिला ही ढोल बजाती है।
गांव के सरपंच प्रतिनिधि नाथूराम वर्मा व सुरेश शुक्ला ने बताया कि बुजुर्गों ने इस परम्परा की शुरुआत होने की कहानी सुनी थी। बताया कि गुलामी के समय में ब्रिटिश फौजों के अत्याचार का प्रतिकार करने और आत्मरक्षा के लिए महिलाओं को प्रशिक्षित करने की मंशा से दांवपेंच सिखाए गए थे। जिसके बाद झांसी की रानी के बलिदान से प्रेरित होकर महिलाओं ने दंगल में भाग लेना शुरू कर दिया था। बताया कि दंगल में ढोल बजाने से लेकर रेफरी तक की भूमिका निभाने की जिम्मेदारी महिलाओं पर ही होती है। पूरे कार्यक्रम के दौरान पुरुषों व युवकों को दूर ही रखा जाता है।