रिपोर्ट-शौकीन खान/कौशल किशोर गुरसरांय
गुरसरांय (झाँसी)।नगर व ग्रामीण अंचलों में गोवर्धन पर्व बड़े धूमधाम एवं उल्लास के साथ मनाया गया।लोगों ने अपने घरों में पूरी आस्था के साथ गाय के गोबर से गिरिराज गोवर्धन की आकृति बनाकर विधि-विधान से पूजा की।भक्तों ने भगवान गोवर्धन को अन्नकूट का भोग लगाया।भक्तों ने मंदिरों में भी गिरिराज गोवर्धन की आकृति बनाई एवं भक्तों ने सामूहिक रूप से भगवान गोवर्धन की पूजा-अर्चना की।जबकि गांवों में समूह बनाकर लोगों ने एक-दूसरे के घर जाकर गोवर्धन की पूजा की।देर शाम दीप,धूप,फूल,गंगा जल आदि लेकर विधिवत गोवर्धन पूजा की गई।ऐसी मान्यता है कि गोवर्धन पूजा व अन्नकूट का संबंध गोवर्धन पूजा के इतिहास भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ा है।द्वापर युग में देवताओं के राजा देवराज इंद्र का घमंड तोड़ने के लिए श्रीकृष्ण ने इंद्र की पूजा करने की बजाय गोवर्धन पर्वत की पूजा करने के लिए ग्रामीणों को प्रेरित किया।जब इंद्र को इस बात का पता चला तो उन्होंने पूरे गोकुल गांव को नष्ट करने व कृष्ण को अपनी शक्तियों का परिचय देने के लिए भारी बारिश करा दी,गांव में हाहाकार मच गया।तब भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी अंगुली पर उठा लिया।और ग्रामीणों की रक्षा की।सात दिन तक लगातार इंद्र ने अपना कहर बरपाया,लेकिन किसी भी ग्रामीणों को क्षति नहीं पहुंची।तब से भगवान श्रीकृष्ण को गिरिराज गोवर्धन के नाम से भी जाना जाता है।तभी से गोवर्धन पर्वत के साथ ही श्रीकृष्णजी के गिरीराज स्वरूप की पूजा की परंपरा चली आ रही है।उन्होंने बताया कि आज के दिन गिरीराज जी की पूजा करने से भगवान श्रीकृष्ण भक्तों के सब दुख हर लेते हैं।