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किंचित मात्र भी मेरा नहीं है यह सिखाता है उत्तम आकिंचन्य धर्म

रिपोर्ट-शौकीन खान/कौशल किशोर गुरसरांय

गुरसरांय (झांसी)।पर्वराज पर्यूषण के नौवे दिन गुराई बाजार गुरसरांय में चल रही है धर्म प्रभावना उत्तम आकिंचन्यधर्म का पालन करने का अभ्यास करा रहे हैं आचार्य श्री 108 विशुद्ध सागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य पंडित श्री पंकज जैन एडवोकेट भिंड ने बताया कि जिसे भी तुम अपना बता रहे हो चाहे उसमें खुद तुम्हारा शरीर ही क्यों ना हो वह भी किंचित मात्र तुम्हारा नहीं है आचार्य श्री बताते थे आकिंचन स्वरूप का ध्यान करो निश्चित ही आकिंचन हो जाओगे ।आकिंचन्य स्वरूपोहं आकिंचन्य स्वरूप को निर्ग्रंथ योगी ही उत्तम आकिंचन्य धर्म के धारक होते हैं आकिंचन धर्म के योगी कहते हैं की धैर्य ही मेरा पिता है क्षमा ही मेरी माता है शांति मेरी पत्नी है सत्य मेरे पुत्र हैं दया मेरी बहन है संयमित मन मेरा भाई है भूमि मेरी शैय्या है दसों दिशा ही मेरे वस्त्र हैं और ज्ञानामृत ही मेरा भोजन है यह सब मेरे कुटुंबी जान है आगे पंडित जी ने सभी को बताया कि किसी को भी अधिक संग्रह नहीं करना चाहिए क्योंकि रत्न करण्ड श्रावकाचार्य में ग्रंथ में गाथा नंबर 27 में आचार्य सामंत भद्र स्वामी ने कहा है कि यदि आपके पुण्य का उदय है तो संपदा का क्या प्रयोजन और यदि आपके पाप का उदय है तो संपदा का क्या प्रयोजन इसलिए बहुत पुरानी कहावत भी है कि पूत सपूत तो का धन संचय और पूत कपूत तो का धन संचय यदि आपने अत्यधिक संपदा को जोड़ भी लिया है और आपका बेटा शराबी निकल गया या गलत रास्ते पर चलने वाला निकल गया तो आपकी संपदा को जोड़ने का क्या प्रयोजन और यदि आपका बेटा बहुत अच्छा निकल गया तो भी आपके संपदा का जोड़ने का कोई प्रयोजन नहीं है इसलिए संपदा के प्रति मत भागो संपदा तो पुण्य से प्राप्त होती है जबकि हमें उत्तम आकिंचन धर्म पर ममता विशेष ध्यान देना चाहिए और यह समझना और इस बात को लक्ष्य में रखकर कार्य करना चाहिए कि किंचित मात्र भी मेरा नहीं है यही हमें उत्तम आकिंचन धर्म सिखाता है
अभिषेक शान्तिधारा करने का सौभाग्य जय कुमार सिघई, अजय सिंघई ,उत्कर्ष सिंघई, विजय सिंघई, हुकुम जैन सेरिया, राकेश सेरिया,संजीव जैन अकोढी,शुभम जैन अकोढी, दीपक जैन नुनार एवं श्री जी की आरती करने का सौभाग्य श्रीमती मंजू सिंघई को प्राप्त हुआ रात्रि की बेला में जिन शासन प्रभावना बहु बेटी मंडल द्वारा सांस्कृतिक नाटिका की प्रस्तुति के द्वारा सभी भक्तों को मनोरंजित किया जाता है।

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